खोदावंदपुर/बेगूसराय। फफौत पंचायत के चकयद्दु में छात्र आइसा ने भारत की पहली शिक्षिका की 193वीं जयंती मनाया. आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता आइसा नेता सचिन कुमार ने किया.इस मौके पर माले नेता अवधेश कुमार ने कहा की भारतीय संविधान ने शिक्षा को प्राथमिक और नि:शुल्क बनाया है. सामान्य जन के लिए शिक्षा की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, यह महत्वपूर्ण प्रावधान किया गया है, लेकिन 19वीं सदी में शिक्षा सामान्य जन की पहुंच से कोसों दूर थी. खासकर स्त्रियों और निम्न जातियों के लोगों को शिक्षा से दूर रखा जाता था. इसी समय में 3 जनवरी 1831 ईस्वी को सतारा जिले के नयागांव में जन्मी सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के महत्व को समझा तथा महिलाओं और बालिकाओं के लिए शिक्षा को सरल और सहज बनाने की मुहिम चलायी. वहीं आइसा राज्य परिषद् सदस्य असीम आनंद ने कहा की सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन सहित महिलाओं की शिक्षा के बढ़ावा को लेकर विभिन्न अभियान चलाए गए, जिसमें सावित्रीबाई फुले का अहम भूमिका है.1848 में सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने वंचित वर्ग के बच्चों के लिए एक विद्यालय आरंभ किया. सावित्रीबाई इसकी प्रथम शिक्षिका बनी. फुले दंपति ने 3 जुलाई 1857 को पहले बालिका विद्यालय खोला, जहां एक ओर एक तबका था, जो नहीं चाहता था कि बालिकाएं शिक्षित हो तथा महिलाओं की सामाजिक हैसियत में बदलाव आए. इसमें आगे आकर फातिमा शेख ने अपना जमीन देकर उसमें विद्यालय खुलवाएं और शिक्षिका की जिम्मेदारी के रूप में अपना योगदान भी दिया. उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई फूले जब स्कूल जाती थी तो उन पर कचड़ा गोबर और पत्थर फेंके जाते थे. और ये चीज आज भी जारी है. बस बदलाव इतना हुआ है कि तब लोग गोबर ईट पत्थर की मार मारते थे और आज आंखो की बोलो की मार मारते हैं. इस मौके पर आइसा जिला उपाध्यक्ष समीर राज ने कहा की वैश्विक पटल पर महिलाओं की शिक्षा को लेकर काफी कुछ लिखा पढ़ा जा रहा था, इसके समानांतर भारत में फुले दंपति द्वारा भी शिक्षा खासकर महिलाओं की शिक्षा को लेकर व स्त्री पुरुष समानता अंधविश्वास व कर्मकांडो से मुक्ति के प्रयास तथा सामाजिक कुरीतियों बाल विवाह, जाति व्यवस्था, छुआछूत पर्दा प्रथा के विरुद्ध भी संघर्ष किए जा रहे थे. आज के दिन बहुत लोग इन्हें याद तो करते हैं. कहीं कहीं आज का दिन "बालिका दिवस को शिक्षिका दिवस के रूप में भी मनाते हैं. उन्होंने कहा कि आज भी कई अदृश्य सावित्रीबाई फुले हैं, जो शिक्षा का अलख जगाए हुए हैं. साथ ही शिक्षिकाओं के साथ हो रही परेशानी और भेदभाव को भी जानना जरूरी बताया. सावित्रीबाई फूले को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम अपने आस-पास की महिलाओं में सावित्रीबाई फूले के गुणों को देखकर उन्हें सम्मानित करें, ताकि अन्य महिलाओं को भी साहस मिले. कार्यक्रम में आइसा नेता कुंदन कुमार, रंजन कुमार, सुरेश महतो, गौरव कुमार, दीपक कुमार वर्मा, बाबु विकास, अमन कुमार, फंटूस कुमार, वकील समेत शामिल थे.