खोदावंदपुर/बेगूसराय। बरियारपुर पश्चिमी पंचायत स्थित नागाधाम में तीन दिवसीय नवग्रह शांति यज्ञ एवं श्रीचंद्रचार्य जयंती महोत्सव सोमवार की देर शाम संपन्न हो गया.इस कार्यक्रम में बरियारपुर पश्चिमी, पूर्वी, तारा, मिर्जापुर, मसुराज, योगीडिह, चकवा सहित अन्य गांवों के लोगों ने भाग लिया. इस आयोजन के दौरान दूर दूर से पहुंचे साधु संतों की भी अच्छी संख्या देखी गयी. समापन भंडारा में संतों एवं भक्तों ने जमकर दही-चूड़ा का आनंद उठाया. कार्यक्रम समापन के दौरान नागाधाम के महंत स्वामी धर्म दास उदासीन जी महाराज ने कहा कि श्रीचंद्रचार्य जी की हिंदु समाज में दो प्रमुख देन है, जिनमें धर्मांतरण पर रोक तथा सनातन के सभी पंथों के बीच में सद्भाव-एकता बनाने का प्रयास शामिल है. उन्होंने कहा कि यदि चंद्राचार्य नहीं होते तो शायद हम हिंदू न होते. यदि वे न होते तो शायद सभी पंथों के बीच इतना सद्भाव देखने को न मिलता. वे डेढ़ सौ वर्षों तक पूरे सांस्कृतिक राष्ट्र में भ्रमण करते रहे. उन्होंने कहा कि श्री चंद्राचार्य अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल आदि में कुछ शिष्यों के साथ पैदल घूम-धूम कर अपना संदेश जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करते रहे. श्रीचंद्रचार्य जी का जन्म आज के पाकिस्तान में लाहौर के तलमंडी नामक गांव में हुआ था. उनके पिता सुप्रसिद्ध संत गुरु नानक जी थे, लेकिन उन्होंने कश्मीर में विद्याध्ययन करते हुए ही उदासीन मार्गी सिद्ध संत गुरु अविनाशी मुनि जी की शिष्यता ग्रहण कर ली. पिता और पुत्र अलग अलग मार्गों के उपदेशक थे. गुरु नानक निर्गुण मार्गी उपदेशक थे, तो श्रीचंद्र निर्गुण-सगुण समन्वयवादी मार्ग के प्रचारक थे. पिता गुरुनानक की गुरुगद्दी पुत्र श्रीचंद्र ने स्वीकार नहीं की. गुरुनानक जी के बाद उनकी गुरुगद्दी गुरु अर्जुनदेव ने संभाली. श्रीचंद्र सनातन धर्म के सच्चे महर्षि थे, जो जीवन भर सनातन की मूल भावनाओं का प्रचार-प्रसार तथा अन्वेषण करते रहे. महंत स्वामी धर्म दास जी महाराज उर्फ नागाबाबा ने बताया कि नवग्रह की शांति चाहते हैं तो पांच सूत्र याद रखना होगा, जिनमें स्वाध्याय, सेवा, संयम, साधना और शील का पालन शामिल है. उन्होंने कहा कि नवग्रह की शांति चाहते हैं तो परिवार में शांति-सद्भावना बनाकर रखना होगा. माता, पिता और गुरु के प्रति श्रद्धा रखनी होगी. नागाबाबा की अमृतमयी वाणी से श्रोता गदगद दिखे. नागाधाम में इस तरह का आयोजन हर वर्ष भादो शुक्ल नवमी अर्थात श्रीचंद्र जयंती के शुभ अवसर पर किया जाता है. इस मौके पर साधु-संतों एवं श्रद्धालुओं का विशाल भंडारा किया गया, जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लिया.