राजेश कुमार/बेगूसराय। सदर प्रखंड क्षेत्र के खम्हार पंचायत अंतर्गत अखिल भारतीय संस्कृत हिन्दी विद्यापीठ, जो कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय कामेश्वरनगर दरभंगा की अंगीभूत इकाई है. जो अपने स्थापना काल से ही यह महाविद्यालय सुविधाओं के अभाव का दंश झेल रहा है. सन् 1965 में स्थापित अखिल भारतीय संस्कृत हिन्दी विद्यापीठ खम्हार, बेगूसराय आज समस्याओं के मकड़जाल से घिरा हुआ है. वर्ग कक्ष का सर्वथा अभाव, संस्थान तक जाने आने के रास्ता का अभाव जैसी कई मूल समस्याएं यहां वर्षों से हैं. इन समस्याओं के निराकरण की मांग जनप्रतिनिधियों और विभाग के अधिकारियों से कई बार की जा चुकी है, परन्तु इस समस्या का निदान नहीं हो रहा है. जिसके कारण संस्कृत शिक्षा के विकास में बाधा आ रही है. इस शिक्षण संस्थान की समस्याओं से प्रधानाचार्य डॉ अशोक कुमार आजाद द्वारा तत्कालीन कुलपति प्रो डॉ सर्व नारायण झा को इस समस्या के सामाधान के लिए पत्राचार किया गया था, तदुपरांत तत्कालीन कुलपति स्वयं महाविद्यालय में आकर समस्या को देखा, उसके बाद स्थल निरीक्षण के लिए त्रिसदस्यीय कमिटी का गठन किया गया. त्रिसदस्यी कमिटी प्रो डॉ श्रीपति त्रिपाठी कुलानुशासक, डॉ पवन कुमार झा विधि पदाधिकारी एवं डॉ अवधेश कुमार चौधरी भूसंपदा पदाधिकारी ने महाविद्यालय में आकर जमीनदाता का जमीन एवं महाविद्यालय के जमीन का स्थलीय निरीक्षण कर जमीन अदला-बदली करने के लिये प्रस्ताव विश्वविद्यालय को समर्पित किया. तदुपरांत वह प्रस्ताव विश्वविद्यालय के सीडिकेट व सीनेट से पारित हुआ. उसके बाद विगत जून 2023 में महाविद्यालय की जमीन को रजिस्ट्री के माध्यम से अदला-बदली कर लिया गया गया. प्राचार्य ने बताया कि सन् 1965 ई. से यह संस्थान लगातार संस्कृत विद्या का प्रचार प्रसार कर रहा है, परन्तु कॉलेज में वर्ग कक्ष की कमी, प्रवेश द्वार का अभाव, चाहरदीवारी का अभाव जैसी कई समस्याएं अभी भी हैं. इन समस्याओं का निराकरण आवश्यक है. उन्होंने बताया कि इन समस्याओं के निराकरण के लिए स्थानीय सांसद गिरिराज सिंह, विधान पार्षद डॉ मदन मोहन झा, सर्वेश कुमार, नगर विधायक कुंदन कुमार, राज्यसभा सांसद डॉ राकेश सिन्हा को गत 09 सितंबर को पत्र के माध्यम से अनुरोध किया गया था, परंतु जनप्रतिनिधियों के द्वारा आश्वासन मिलने के बावजूद भी धरातल पर कोई भी विकास कार्य नहीं हो सका.
प्राचार्य ने बताया कि सदर प्रखंड क्षेत्र के खम्हार पंचायत के मुखिया अवनीश कुमार ने महाविद्यालय में रास्ता बनवाने का आश्वासन दिये हैं, ताकि छात्र- छात्राओं व शिक्षकों को महाविद्यालय में आने-जाने की सुविधा हो सकें. उन्होंने बताया है कि इस शिक्षण संस्थान के उपशास्त्री एवं शास्त्री प्रथम खण्ड में 89 छात्र छात्राएं नामांकित हैं, जबकि और छात्रों का नामांकन कार्य भी जारी है. प्रधानाचार्य ने बताया कि शास्त्री द्वितीय खण्ड एवं तृतीय खण्ड का परीक्षा परिणाम नहीं आने के कारण छात्रों के नामांकन की संख्या कम है. यहां कुल 10 शिक्षकों का पद स्वीकृत है, लेकिन वर्तमान समय में यहां प्रधानाचार्य समेत मात्र चार शिक्षक ही पदस्थापित हैं, तथा साहित्य, ज्योतिष, वेद, संस्कृत एमए विषय के शिक्षक नहीं रहने के कारण पठन पाठन कार्य में समस्या उत्पन्न होती है. उन्होंने इस महाविद्यालय में रिक्त पदों के अनुरूप शिक्षकों के पदस्थापन की मांग कुलपति से किया है. प्राचार्य ने बताया कि छात्र छात्राओं को पीने के लिये लगे चापाकल वर्ष 2019 से ही खराब पड़ा हुआ है. इस समस्या का निदान प्रधानाचार्य द्वारा शिक्षकों के सहयोग से आर ओ लगाकर किया गया. उन्होंने बताया कि यहां वर्तमान में पदस्थापित शिक्षकों ओम प्रिय सहायक प्रोफेसर व्याकरण, डॉ ललन कुमार हिन्दी, डॉ विनय कुमार चौधरी अंशकालीन शिक्षक व्याकरण, कार्यालय सहयोगी मीरा कुमारी, आदेशपाल रामदुलारी कुमारी, लिपिक त्रिपुरारी झा के सहारे महाविद्यालय का संचालन किया जा रहा है.
इस मौके पर ग्रामीण कॉमरेड जगदीश सिंह, संजय कुमार सिंह, अरुण कुमार आदि ने बताया कि इधर आकर जाने की हमारे गांव में डिग्री महाविद्यालय भी है, क्योंकि पूर्व में इस महाविद्यालय का गतिविधि काफी शिथिल था. ग्रामीणों ने छात्र को पढ़ते देख काफी प्रसन्नता व्यक्त की. उन्होंने बताया कि जब से प्रधानाचार्य डॉ अशोक कुमार आजाद इस महाविद्यालय में आये हैं तो पठन पाठन एवं अन्य विकासात्मक कार्यों को मूर्त रुप देने में लगे हुए हैं. मिली जानकारी के अनुसार इस कॉलेज के भूमिदाता संत प्रसाद सिंह, जादो सिंह, राम प्रताप सिंह, बालो सिंह, नेमो नारायण सिंह, राम सनेही सिंह, शिवराम सिंह, प्यारे सिंह, दामोदर सिंह, भागीरथ सिंह, सूरज नारायण सिंह, बैद्यनाथ राय आदि लोगों ने इस महाविद्यालय में अपना जमीन दान देकर कॉलेज की स्थापना करवायी थी. ग्रामीण पंडित सुधाकर शास्त्री के द्वारा इस महाविद्यालय की स्थापना की गयी थी. प्रधानाचार्य ने बताया कि महाविद्यालय में वर्गकक्ष का अभाव है, जिसके कारण पठन पाठन की व्यवस्था सुचारू रुप से संचालित करने में समस्या होते रहती है. इतना ही नहीं महाविद्यालय में चाहरदीवारी का अभाव है, जिससे असुरक्षा की भावना बनी रहती है. और खासकर छात्राएं भयभीत रहती है. इसके अलावे महाविद्यालय में प्रवेश द्वार का अभाव है, जिसके कारण महाविद्यालय की पहचान धूमिल हो रही है. यह करीब 58 वर्ष पूराना स्नातक स्तरीय महाविद्यालय है, जो अपने आंतरिक आधारभूत संरचना के अभाव में अपनी पहचान को मोहताज है.
इस कार्य में वर्तमान विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ दीनानाथ साह, भूसंपदा पदाधिकारी उमेश झा एवं कुलपति प्रो डॉशशिनाथ झा ने महाविद्यालय की समस्या को देखकर निदान के लिए अभूतपूर्व सहयोग किया. उक्त कार्य के लिए प्रधानाचार्य ने सभी विश्वविद्यालय पदाधिकारियों को धन्यवाद एवं आभार व्यक्त की है. इससे 1965 से चली आ रही रास्ता का समस्या का सामाधान हो गया. इस शिक्षण संस्थान के प्राचार्य ने बताया कि इस महाविद्यालय में दस कट्ठा डेढ़ धूर जमीन स्थानीय ग्रामीण सुरेन्द्र सिंह से बदला गया. यह कार्य महाविद्यालय के विकास में महत्वपूर्ण बात मानी जा रही है. इससे ग्रामीणों एवं अभिभावकों में प्रसन्नता है.